बता ये हुनर
तूने सिखा कहा
से
निगाहों
निगाहों में जादू
चलाना
मेरी जान सिखा
है तुमने जहा
से
मेरे दिल को
तुम भा गए,
मेरी क्या थी
इस में खता
मुझे जिसने तडपा दिया,
यही थी वो
जालिम अदा
ये रांझा की बातें,
ये मजनू के
किस्से
अलग तो नहीं
हैं मेरी दास्ताँ
से
मोहब्बत
जो करते हैं
वो मोहब्बत जताते
नहीं
धड़कने अपने दिल
की कभी, किसी
को सुनाते नहीं
मज़ा क्या रहा
जब के खुद
कर दिया हो
मोहब्बत
का इज़हार अपनी
जुबां से
माना के जान-ए-जहां
लाखों में तुम
एक हो
हमारी निगाहों की भी
कुछ तो मगर
दाद दो
बहारों को भी
नाज़ जिस फूल
पर था
गीतकार
: एस. एच. बिहारी
गायक : आशा - रफी
संगीतकार
: ओ. पी. नय्यर
चित्रपट : कश्मिर की कली (१९६४)ईशारों ईशारों में दिल लेनेवाले -
डॉ. वैभव केसकर / डॉ. रजनी हुद्दा
आमच्या कॅराओके क्लबच्या सभासदांचा हा वेगळा प्रयोग. एकमेकांपासून शेकडो किलोमिटर लांब राहणार्या दोन गायक कलावंतांनी हे गाणं वेगवेगळं गायलं आहे यावर विश्वास बसू नये ईतकं ते एकजीव झालं आहे.
वा! फारच सुरेख झालंय गाणं :-)
उत्तर द्याहटवाखरोखरीच दोघांनी वेगवेगळं गायलं असेल अशी पुसटशीही कल्पना येत नाही. कमाल आहे! ब्राव्हो!!